चुनाव आयोग ने खोल दी सरकार और गोदी मीडिया की पोल, लेकिन ये सच आपको नहीं पता होगा ?

Spread the love

 

आजाद भारत के इतिहास में ये पहली बार है जब इस तरह से खुलेआम गोदी मीडिया को मुख्य चुनाव आयुक्त ने लताड़ लगाई हो, लताड़ भी ऐसी की गोदी मीडिया अब अपना मुंह छुपाता हुआ घूम रहा है. मुख्य चुनाव आयुक्त ने तो गोदी मीडिया को नॉनसेंस तक कह डाला अब आप इसी बात से अंदाज़ा लगा लीजिये की गोदी मीडिया किस निचले स्तर तक सरकार की भक्ति में लगा हुआ है.

 

आपको बता दे अभी तक विपक्ष पिछले कुछ सालों से गोदी मीडिया पर सवाल उठा रहा था लेकिन इसके बावजूद भी गोदी मीडिया अपनी गंदी और एकतरफा हरकतों से बाज नहीं आ रहा. टीवी चैवल्स के मालिक सरकार के पक्ष में 2014 के बाद से माहौल बनाते रहे हैं और उनको फायदा पहुंचते रहें। लेकिन सवाल बड़ा है जिसको आपको जानना जरुरी है की आखिर सरकार में किसके इशारे पर लोकतंत्र का गाला घोटा जाता है ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि मीडिया को लोकतंता का चौथा स्तम्भ माना जाता है. 2014 के बाद से मीडिया के गिरते स्तर के लिए कौन जिम्मेदार है. विपक्ष तो शुरु से ही गोदी मीडिया का विरोध करता रहा है. लेकिन अब तो मुख्य चुनाव आयुक्त की लताड़ ने गोदी मीडिया को कहीं का न छोड़ा. चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने बताया कि मतदान के 3 दिन बाद मतगणना सुबह साढे 8 बजे से शुरु होती है. जिसका नतीजा चुनाव आयोग अपनी वेबसाईट पर साढे 9 बजे अपलोड करता है. लेकिन गोदी मीडिया लोगों को गुमराह करने के लिए सुबह 8 बजे से ही किसी विशेष पार्टी की जीत के डंके पीटने लगती है. उन्होंने ये भी कहा कि अपने द्वारा एग्जिट पोल सही दिखने के लिए टीवी चैनल्स जनता में भ्रम पैदा कर देते हैं.

 

कैसे गोदी मीडिया करती है लोगों का ब्रेनवॉश ?

 

आज हम आपको बताएंगे की गोदी मीडिया का स्तर कितना घटिया हो गया है. भाषा की मर्यादा को भी भूल टीआरपी के लिए कुछ भी पत्रकारिता कर रहे हैं. गोदी मीडिया वालों को देश की सरकार से सवाल करना चाहिए. सरकार चाहे किसी भी पार्टी की क्यों ना हो? आज गोदी मीडिया धर्म और राष्टवाद की आड़ में अपने आपको बचा रहा है ? आज देश की जनता जानना चाहती है गोदी मीडिया से कि आखिर कब तक करोगे यह खेल? कब तक आप देश की जनता से विश्वासघात करते रहोगे? कब तक आप देश की सच में आवाज़ बनोगे? आज जिस तरीके से जिस तरीके से कोई भी घटना होती है और इसको न्यूज़ में ऐसे दिखाया जाता कि कोर्ट में आरोप जाने से पहले टीवी पत्रकारिता वाले उस घटना पर फैसला सुना देते हैं। इन पत्रकारों को जज बोलना गलत नहीं होगा, क्योंकि वे पत्रकारिता कम और फैसले ज़्यादा सुनाते हैं. अब लोगों को लगने लगा है कि उनकी आवाज़ टीवी मीडिया के माध्यम से लोकतंत्र में उठ पाएगी भी या नहीं? देश की 90% जनता को केवल बेवकूफ बनाया जाता है. वास्तविक मुद्दे टीवी पत्रकारिता से गायब हो हो गए हैं. बचा है तो सिर्फ सरकार की चाटुकारिता. आज भारत में बेरोज़गारी इतनी बढ़ी हुई है मगर लोगों के रोज़गार पर गोदी मीडिया बात नहीं करती है क्यूंकि उसे सरकार का प्रवक्ता बनने से ही फुस्रास्त नहीं है. चुनाव आयुक्त की इस तीखी टिप्पणी के बावूजद भी अगर आँखें न खुली गोदी मीडिया की तो देश में होने वाली बेरोजगारी, महंगाई, दंगे इन सभी के लिए गोदी मीडिया जिम्मेदार है और रहेगी.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *