अध्यक्ष पद की रार के चलते चार फांक में बंट रहा अखाड़ा परिषद !

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धर्म की सबसे बड़ी आस्था महाकुंभ 2025 जो कि 144 साल बाद संयोग बना तो इस  महाकुंभ की चर्चा सिर्फ देश में नहीं विदेशों में रहा जहां देश विदेश से बड़े बड़े नेता, उद्योगपति ,व्यापारी ,सेलिब्रिटी  आम आदमी  लाखों करोड़ों लोग अपने पाप पुण्य की लेखा जोखा करने प्रयागराज पहुंचे और आस्था की डुबकी लगाई तो वही अब महाकुंभ समाप्त होने के अपने अन्तिम चरण में प्रवेश  कर चुका है आपको बता दे महाकुंभ में जो भी गए  हर किसी के मन एक आस्था थी एक विश्वास था इस महाकुंभ  में जो भी गए एक अपनी अलग पहचान बना कर गए ..अगर बात करे अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की तो माना जा रहा था इस महाकुंभ में अखाड़ा परिषद की जो विवाद है जो भी  रंजिश है वो खत्म हो जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हो पाया …
आईए जानते है क्या है पूरा मामला
कुंभ एवं अर्ध कुंभ के दौरान अखाड़ों को एकजुट रखने के लिए वर्ष 1954 में अखिल भारतीय षटदर्शन अखाड़ा परिषद का गठन हुआ था लेकिन, अक्सर ही अखाड़ा परिषद विवादों में ही घिरा रहा। परंपरा के मुताबिक अध्यक्ष पद के लिए संन्यासी, वैरागी एवं उदासीन अखाड़े का क्रम तय हुआ। वर्ष 2004 में वैरागी अखाड़े से महंत ज्ञानदास अध्यक्ष बनाए गए। इसके बाद कुंभ में अध्यक्ष पद को लेकर विवाद छिड़ गया। महंत ज्ञानदास को अध्यक्ष बनाए जाने का विवाद कोर्ट तक भी पहुंचा। वर्ष 2012 में प्रयाग कुंभ बिना अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के ही हुआ। कुंभ के बाद निरंजनी अखाड़े के तत्कालीन सचिव श्रीमहंत नरेंद्र गिरि अध्यक्ष बनाए गए। वर्ष 2019 का अर्धकुंभ उनके कार्यकाल में हुआ लेकिन, उनकी मृत्यु के बाद अध्यक्ष पद को लेकर दोबारा से विवाद उठ खड़ा हुआ।

बरहाल पूरे कुंभ के दौरान अखाड़ा परिषद चार अलग-अलग गुटों मेें बंटा रहा। वर्चस्व की जंग में तीनों संन्यासी अखाड़े आपस में ही उलझे रहे वहीं, विवाद के चलते उदासीन अखाड़ों ने दूरी बनाए रखी। हालात इस कदर बिगड़े कि अखाड़ों ने एक दूसरे के यहां आमंत्रण-निमंत्रण की वर्षों पुरानी पंरपरा भी तोड़ दी। एक दूसरे के यहां होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने नहीं पहुंचे।
तो इसी खींचतान के बीच कुंभनगरी से उनकी विदाई भी हो गई। महाकुंभ आरंभ होने से पहले ही अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में अध्यक्ष एवं महामंत्री पद को लेकर विवाद छिड़ गया। निरंजनी अखाड़े के श्रीमहंत रविंद्र पुरी एवं जूना अखाड़े के हरि गिरि को परिषद मेंं पदाधिकारी बनाने से नाराज होकर महानिर्वाणी ने अनी अखाड़ा के साथ मिलकर अलग गुट बना लिया। इसने महानिर्वाणी के रविंद्र पुरी को अध्यक्ष एवं निर्मोही अनी अखाड़े के राजेंद्र दास को महामंत्री बना दिया। महानिर्वाणी एवं निरंजनी के बीच चल रहे विवाद को देखते हुए नया उदासीन एवं बड़ा उदासीन ने अखाड़ा परिषद से दूरी बना ली

अनी अखाड़े ने संन्यासी अखाड़ों से अलग वैष्णव परिषद बना लिया। महाकुंभ आरंभ होने के साथ अखाड़ा परिषद में छिड़े घमासान के शांत होने की संभावना जताई जा रही थी लेकिन, पूरे महाकुंभ के दौरान अखाड़ों के बीच चल रहा विवाद नहीं सुलझ सका। सभी अखाड़े अध्यक्ष एवं महामंत्री पद को लेकर ही अड़े हुए हैं। सुलह-सफाई न होने के पीछे भी अखाड़ा पदाधिकारी एक दूसरे को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। कुंभ के दौरान इनके बीच कोई संवाद नहीं हुआ।

अखाड़ा परिषद में वर्चस्व की जंग इस कदर छिड़ी रही कि अखाड़ों ने एक-दूसरे के यहां होने वाले कार्यक्रमों में जाने को भी दर किनार कर दिया। महाकुंभ में महामंडलेश्वर की पदवी देने की परंपरा है। सभी अखाड़ों के प्रतिनिधि इसमें आकर चादरपोशी कार्यक्रम में शामिल होते हैं। एक तरह से इसे सभी अखाड़ों की ओर से महामंडलेश्वर को मान्यता देने की तरह देखा जाता है। पिछले कुंभ तक अखाड़ों ने यह परंपरा निभाई लेकिन, इस बार यह परंपरा टूट गई। धर्मध्वजा स्थापित होने के बाद उनका यह भाईचारा भी खत्म हो गया। वैष्णवों के प्रतिनिधि संन्यासी अखाड़ों में नहीं गए। संन्यासियों ने भी वैष्णव अखाड़ों से दूरी बनाए रखी। यहां तक संन्यासी अखाड़ों में भी आपसी आना-जाना बंद रहा। निरंजनी अखाड़े के पदाधिकारियों ने महानिर्वाणी में हुए अभिषेक कार्यक्रम से दूरी बनाए रखी वहीं निरंजनी अखाड़े के पदाधिकारी भी उनके यहां आयोजित किसी पट्टाभिषेक कार्यक्रम में शामिल होने नहीं पहुचे।

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