उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ की यूपी की कुर्सी को लेकर अकसर भविष्यवाणियों का दौर चलता रहता है. अभी हाल ही में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सीएम योगी आदित्यनाथ को लेकर भविष्यवाणी की है. कुंदरकी में पिछले हफ्ते चुनावी रैली संबोधित करते हुए अखिलेश ने कहा कि महाराष्ट्र चुनाव के बाद इनकी (सीएम योगी) की कुर्सी छीन ली जाएगी. उन्होंने कहा कि आजकल सरकार को अपनी कुर्सी बचाने का गुस्सा है, क्योंकि दिल्लीवालों ने तय कर लिया है कि महाराष्ट्र के चुनाव के बाद इनकी कुर्सी बचेगी नहीं.अगर आप ध्यान दें तो दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी लोकसभा चुनावों के पहले कुछ ऐसा ही कहा था. अब वही बात महाराष्ट्र और झाारखंड विधानसभा चुनावों के पहले अखिलेश यादव कह रहे हैं. पर शायद योगी आदित्यनाथ अब सीएम की कुर्सी से ऊपर उठ चुके हैं. विपक्ष शायद इस बात को समझ नहीं पा रहा है या जानबूझकर अवॉयड कर रहा है. पर अखिलेश यादव की इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत और हार योगी आदित्यनाथ के भविष्य से बहुत मजबूती के साथ गुंथा हुआ है.
आम तौर पर विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों में खराब परफार्मेंस को किसी भी मुख्यमंत्री को हटाए जाने का वैलिड रिजन माना जाता है. इस आधार पर देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में 2022 में भारतीय जनता पार्टी की सीटें कम हो कर 255 ही रह गईं थीं जबकि 2019 में 312 सीटें जीतकर तीन-चौथाई बहुमत पार्टी ने हासिल किया था. इसी तरह लोकसभा चुनावों में भी रहा . 2019 के लोकसभा चुनावों में जहां पार्टी 78 सीटों पर चुनाव लड़ा था जिसमें से 62 सीटों पर जीत मिली थी वही 2024 में घटकर यह 33 रह गई. मगर जब इन दोनों झंझावतों को योगी आदित्यनाथ झेल चुके हैं तो फिर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव और उत्तर प्रदेश के 9 विधानसभा क्षेत्रों में होने वाले उपचुनाव में मिली हार भी उनका कुछ बिगाड़ लेगी इसमें संदेह ही है. इसके ठीक उलट इस बार महाराष्ट्र में आरएसएस ने मोर्चा संभाला हुआ है. संघ का एक एक कार्यकर्ता महाराष्ट्र में बीजेपी की जीत को लेकर कार्य कर रहा है.
लोकसभा चुनावों में हुई गड़बड़ को दुरुस्त करने के प्रयास में भाजपा ने संघ के साथ समन्वय बढ़ाया है. जिसमें डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने संघ नेतृत्व के साथ कम से कम आधा दर्जन बैठकें कीं और विधानसभा चुनावों के लिए एक रोडमैप तैयार किया. संघ ने उन सीटों पर अपने काडर को तैनात किया, जहां पार्टी कमजोर स्थिति में थी. इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि एक आरएसएस नेता ने कहा, भाजपा और आरएसएस के काम करने के तरीके में स्पष्ट अंतर है. हमारे स्वयंसेवक कोई जनसभाएं नहीं कर रहे हैं या जनता से किसी विशेष उम्मीदवार के लिए वोट देने की अपील नहीं कर रहे हैं. आरएसएस ने अपने नेटवर्क को सक्रिय कर दिया है ताकि लोगों में उन महत्वपूर्ण मुद्दों के प्रति जागरूकता पैदा की जा सके, जो हिंदुओं की एकता को खतरा पैदा कर रहे हैं. हमारा लक्ष्य एक मजबूत हिंदू राष्ट्र बनाना है, जो जाति, समुदाय और धर्म से ऊपर उठकर हर व्यक्ति के कल्याण के लिए काम करे. स्वयंसेवक छोटे समूहों में लोगों तक पहुंच रहे हैं और न केवल 100% मतदान सुनिश्चित करने की अपील कर रहे हैं, बल्कि यह भी बता रहे हैं कि कैसे और किसे वोट देना है. जाहिर है कि आरएसएस का प्रभाव जितना पार्टी पर बढ़ेगा वर्तमान परिस्थितियों में योगी आदित्यनाथ और मजबूत होकर उभरेंगे.
कटेंगे- बटेंगे को मिल जाएगी कवायद !
योगी आदित्यनाथ के नारे बंटेंगे तो कटेंगे को लेकर बीजेपी बंटी हुई नजर आ रही है. यह जानते हुए भी इसी नारे का आसान वर्जन पीएम मोदी ने एक हैं तो सेफ हैं दिया है . दूसरे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी बंटेंगे तो कटेंगे पर पॉजिटिव रुख दिखा चुका है. इसके बाद भी लगातार इस तरह की आवाजें उठ रहीं हैं जैसे यह लगता है योगी आदित्यनाथ ने यह नारा देकर कुछ गलत कर दिया है. महाराष्ट्र में चुनाव लड़ रही सत्ताधारी महायुति गठबंधन में इस नारे को लेकर विवाद की स्थिति है. एनसीपी नेता अजित पवार ने पहले ही इस नारे से खुद को अलग कर लिया था . बाद में महाराष्ट्र बीजेपी के भी 2 नेताओं ने इस नारे पर सवाल उठा दिया. पंकजा मुंडे और अशोक चह्वाण का भी मानना था कि बंटेंगे तो कटेंगे का नारा यूपी के लिए सही हो सकता है पर महाराष्ट्र के लिए नहीं. पर जिस तरह इस नारे पर राज्य के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस भरोसा कर रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि भाजपा की रणनीति हो सकती है कि कुछ लोग विरोध करें और कुछ लोग समर्थन करते रहें. पर कुल मिलाकर महाराष्ट्र के चुनावों के केंद्रबिंदु में योगी आदित्यनाथ का नारा बंटेंगे तो कटेंगे ही है. जाहिर है कि अगर महायुति को चुनावों में सफलता मिलती है तो उसमें बंटेंगे तो कटेंगे नारे को और इस नारे के देने वाले को श्रेय जाएगा. नेचुरल है कि इसके बाद अन्य राज्यों में भी जो विधानसभा चुनाव होने वाले उसमें योगी आदित्यनाथ की डिमांड और बढ़ जाएगी.
केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक को मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी !
दरअसल सीएम योगी द्वारा दिए गए नारा बंटोगे तो कटोगे को लेकर केवल महाराष्ट्र में ही माहौल नहीं गरम है. यूपी बीजेपी में भी इसे लेकर ऊहापोह की स्थित है. इस नारे को लेकर पहले तो डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने बचने की कोशिश की पर बाद में सरेंडर नजर आए. पहले कहा की यह नारा किसी और संदर्भ के विषय में बात कहा गया होगा और यह पार्टी का नारा नहीं है. केशव कहते हैं कि सर्वोच्च नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी हैं उनका कहना है एक है तो सेफ है . वहीं अब इस मामले में प्रदेश के दूसरे डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक का भी बयान आया है. वाराणसी पहुंचे डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने बचते हुए कहा कि भारतीय जनता पार्टी सबको इकट्ठा करके सनातन संस्कृति को आगे बढ़ने का कार्य कर रही है. जाहिर है कि यूपी सीएम का विरोध उनके डिप्टी सीएम की ओर से अभी भी कम नहीं हुआ है. उत्तर प्रदेश में इन नेताओं की आपसी खींचतान का ही नतीजा है कि उत्तर प्रदेश में प्रशासन ठीक ढंग से काम नहीं कर रहा है. उत्तर प्रदेश में डीजीपी से लेकर तमाम मेडिकल कॉलेज और अन्य संस्थान कार्यवाहक नियुक्तियों के भरोसे चल रहे हैं. सब कुछ वेट एंड वॉच की स्थिति में है. संभावना है कि महाराष्ट्र चुनावों के बाद यह इंतजार खत्म हो जाएगा.