पूर्वांचल वोटर्स का दबदबा: क्या केजरीवाल इस बार अपनी वापसी कर पाएंगे ?

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दिल्ली की राजनीति में सर्दियों का मौसम भले ही दस्तक दे चुका हो, लेकिन चुनावी पारा हर दिन चढ़ता जा रहा है। 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों की कड़ी तैयारी शुरू हो चुकी है, और इस बार का मुकाबला किसी भी समय की तुलना में ज्यादा दिलचस्प और पेचीदा हो सकता है। हाल ही में, राज्यसभा में हुए एक गर्म बहस ने दिल्ली की सियासत में नई चिंगारी पैदा कर दी है। बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा और आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह के बीच तीखी नोकझोंक हुई, जब नड्डा ने आरोप लगाया कि क्या आम आदमी पार्टी अब तक बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों के वोटों पर अपनी सत्ता कायम रखे हुए है? संजय सिंह ने पलटवार करते हुए कहा, था आपकी हिम्मत हुई कि आप हमारे बिहारी और पूर्वांचलियों के मेहनती भाइयों की तुलना रोहिंग्या और बांग्लादेशियों से करें?” इस तीखी बहस ने दिल्ली के आगामी चुनावों के माहौल को और गरमा दिया है।

अब यह विवाद दिल्ली की सियासत में एक नया मोड़ ले चुका है। बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच जुबानी जंग का दौर शुरू हो चुका है, और इसके साथ ही कांग्रेस ने भी अपनी ताकत का एहसास दिलाने की कोशिश शुरू कर दी है। 10 जनवरी तक चुनावी कार्यक्रमों के ऐलान की उम्मीद है, और इस बीच, तीन बड़े मुद्दे जो दिल्ली की चुनावी हवा को प्रभावित कर रहे हैं—रोहिंग्या-बांग्लादेशी, पूर्वांचल के मतदाता, और अंबेडकर का अपमान।

 रोहिंग्या और बांग्लादेशी विवाद 

दिल्ली के वोटर लिस्ट से नाम गायब होने पर अरविंद केजरीवाल ने रोहिंग्या और बांग्लादेशियों के नाम को लेकर सवाल उठाए थे, जो अब दिल्ली की राजनीति का अहम मुद्दा बन गया है। बीजेपी ने आरोप लगाया है कि आप सरकार ने इन लोगों को मुफ्त बिजली-पानी देकर दिल्ली की राजनीति में घुसपैठ की है। वहीं, आप का कहना है कि केंद्र सरकार ने ही इन लोगों को बसाने का काम किया है। यह विवाद अब एक नए मोड़ पर पहुंच चुका है, और दिल्ली के मतदाता इसे ध्यान से देख रहे हैं।

 पूर्वांचल वोटर्स का दबदबा 

दिल्ली में करीब 30% से ज्यादा लोग बिहार और यूपी के हैं, और ये मतदाता विधानसभा की 70 सीटों में से लगभग 25 सीटों के परिणाम को प्रभावित करते हैं। पूर्वांचल के मतदाताओं की मुखरता अब चुनावी समीकरणों को बदलने की ताकत रखती है। अरविंद केजरीवाल ने पूर्वांचल वोटर्स को साधने की पूरी कोशिश की है, और उनका ध्यान इस महत्वपूर्ण वोट बैंक पर है।

 अंबेडकर का अपमान 

अंबेडकर का मामला सीधे तौर पर दलित और पिछड़े समुदाय से जुड़ा है। दिल्ली में दलितों की आबादी 16.7% है, और इन वोटों के लिए बीजेपी, आप और कांग्रेस तीनों पार्टियां जोर-शोर से मैदान में हैं। खासकर कांग्रेस ने इस मुद्दे को उठाया है, और बीजेपी और आप पर अंबेडकर के कथित अपमान का आरोप लगाया है। इस मुद्दे का राजनीतिक लाभ कौन उठाएगा, यह तो वक्त ही बताएगा। तो अब सवाल यह उठता है कि क्या बीजेपी एक बार फिर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हो पाएगी, या आम आदमी पार्टी अपनी वापसी करने में सफल होगी? या फिर कांग्रेस किसी चमत्कारी मोड़ से चुनावी बाजी पलट देगी? यह चुनावी जंग अब तक की सबसे दिलचस्प हो सकती है…

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