मुझसे जो अच्छा हो सकता था, मैंने किया इतिहास मेरे प्रति मौजूदा मीडिया के मुकाबले अधिक दयालु होगा…
ये शब्द थे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का 92 साल की उम्र में दिल्ली के एम्स में कल देर रात निधन हो गया. आपको बता दे मनमोहन सिंह एक अर्थशास्त्री से लेकर देश के प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होकर उन्होंने देश की सेवा की थी. रिजर्व बैंक के गवर्नर जैसे पद पर रहे डॉ मनमोहन सिंह केंद्रीय वित्त मंत्री के रूप में आर्थिक संकट से जूझते देश को नई आर्थिक नीति का उपहार दिया और प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उदारवादी आर्थिक नीति को बढ़ावा दिया और देश की अर्थव्यवस्था को नई उड़ान दी
देश में आर्थिक सुधारों के जनक माने जाने वाले र्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के साथ ही भारत के राजनीतिक रंगमंच का एक नायाब सितारा सदा के लिए डूब गया है। गरीबी की पृष्ठभूमि में पैदा होकर बिना किसी राजनीतिक पृष्ठभूमि के भारत जैसे बड़े लोकतांत्रिक देश का लगातार 10 साल तक प्रधानमंत्री बने रहने की मनमोहन सिंह के असाधारण सफर ने इस दौरान कई पड़ाव और मंजिलों को छुआ।
मनमोहन सिंह की कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी
मनमोहन सिंह देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री रहे जिनकी कोई सघन राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी। राज्यसभा के सदस्य रहते हुए संप्रग की गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने की उनकी कामयाबी इसका प्रमाण है। वस्तुतः भारतीय राजनीति में मनमोहन सिंह के उदय का श्रेय कांग्रेस के दो बड़े नेताओं पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को जाता है।
राजनीतिक इतिहास में उन्हें एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर के खिताब मिला
2004 के आम चुनाव के बाद जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद स्वीकार करने से इनकार कर दिया तो उनके सामने एक ऐसे नेता को यह जिम्मेदारी सौंपने की चुनौती थी जो न केवल इस पद के योग्य हो बल्कि कांग्रेस नेतृत्व की सर्वोच्चता के लिए कोई खतरा भी न हो। प्रणव मुखर्जी और अर्जुन सिंह जैसे दिग्गजों की दावेदारी के बीच सोनिया ने तब मनमोहन सिंह पर भरोसा किया और प्रधानमंत्री के रूप में अपने संपूर्ण कार्यकाल में उन्होंने इस भरोसे को कोई आंच नहीं आने दी। यही कारण है कि राजनीतिक इतिहास में उन्हें एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर के खिताब से भी जाना जाता है।
काम करके दिया अपनी आलोचना का जवाब
मनमोहन सिंह को उनके राजनीतिक विरोधी कई बार कठपुतली और कमजोर बताने से परहेज नहीं करते थे। लेकिन मृदुभाषी और संयम की मर्यादा का अनूठा उदाहरण पेश करते हुए उन्होंने इसका प्रतिवाद करने की बजाय अपने कार्यों से इसका माकूल जवाब दिया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 2008 में अमेरिका के साथ परमाणु समझौते का उनका फैसला रहा जब वामपंथी दलों के समर्थन वापसी की धमकी-दबाव में न आते हुए इसे सिरे चढ़ाया।वामपंथी दलों ने समर्थन वापस ले लिया तो सोनिया गांधी के साथ मिलकर समाजवादी पार्टी का समर्थन जुटाकर न केवल सरकार बचाई बल्कि ऐतिहासिक परमाणु समझौते को मुकाम तक पहुंचाया। भले ही राजनीति में मनमोहन सिंह की इंट्री करीब 60 साल की उम्र में हुई मगर उनकी सियासी दूरदर्शिता और गहराई का पता इससे चलता है कि जब जम्मू-कश्मीर में पीडीपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ गठबंधन कर सरकार बनाने की जटिल पहल हुई थी तो सोनिया गांधी ने अहमद पटेल के साथ मनमोहन सिंह को भेजा था। इसके बाद ही 2004 के आम चुनाव से एक साल पूर्व उन्हें राज्यसभा में नेता विपक्ष बनाया
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन से सिर्फ राजनीतिक गलियारों में ही शोक की लहर नहीं है बल्कि पूरा देश शोक में डूबा हुआ है क्योंकि राजनीतिक का एक दशक भी डूब गया ..