सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि नदियां हमारी लाइफ लाइन हैं। यह सूखेंगी तो लाइफ लाइन सूख जाएगी। नदियां बढ़ेंगी तो साथ में तमाम वनों को भी बढ़ावा मिलेगा। प्रकृति से यदि खिलवाड़ करेंगे तो इसके परिणाम भुगतने पड़ेंगे। कोविड काल को याद कर लें, कैसे लोग तड़प रहे थे जैसे बिन पानी की मछलियां।
मौका, तारामंडल स्थित एक निजी होटल में नगर निगम गोरखपुर और डब्ल्यूआरआई इंडिया के सहयोगी से गोरखपुर को खुले में कचरा जलाने से मुक्त शहर बनाने को लेकर आयोजित कार्यशाला के समापन का था। सीएम मुख्य अतिथि के तौर पर संबोधित कर रहे थे।
कहा, महात्मा गांधी ने कहा था कि हमारी प्रकृति सबकी जरूरतों को पूरा कर सकती है, लेकिन किसी के लोभ को नहीं। एयर क्वालिटी इंडेक्स में गोरखपुर ने अच्छी छलांग लगाई है। नवंबर में एनसीआर एक गैस चैंबर के रूप में बदल जाता है। लंग्स के मरीजों के लिए डॉक्टर्स की ओर से अलर्ट जारी हो जाता है।
इस स्थिति के लिए केवल दिल्ली के लोग जिम्मेदार नहीं हैं। पीएम मोदी ने कहा है कि हमें 2070 तक नेट जीरो के लक्ष्य को हासिल करना है। पिछले 10 वर्षों में इसके लिए कार्य किए गए। कार्बन उत्सजर्न को कम करने के लिए एलईडी लाइट लगाई गई। पहले हेलोजन और पीली लाइट लगती थी।
उससे कार्बन उत्सर्जन ज्यादा था। आवाज भी करती थी, उसपे कीड़े आकर बैठते थे। इसे हटवाकर एलईडी स्ट्रीट लाइट लगाने के निर्देश दिए। आज प्रदेश के सभी निकायों से एक हजार करोड़ रुपये की बचत हो रही है। इस रुपये का सदुपयोग अन्य बेहतर सुविधाओं के लिए हो रहा है।
पहले जब पीएम मोदी का हेलीकॉप्टर उतरता था तो कितनी भी सफाई कर लो लेकिन लैंडिंग के समय कूड़ा उड़ने लगता था। उस सतय तय किया कि सिंगल यूज प्लास्टिक को बैन करना है। कैबिनेट की बैठक बुलाई तो साथियों ने कहा कि बहुत लोगों पर प्रभाव पड़ेगा। फिर बाद में इसे लागू कर दिया।
सीएम ने कहा कि 2017 से पहले गोरखपुर में एक घंटे की बारिश के बाद पानी लग जाता था। प्रशासन से इसे सुधारने के निर्देश दिए। इसके बाद नाला निर्माण किए गए। ड्रेनेज सिस्टम को दुरुस्त किया गया। 2020 में एक दिन लगातार 12 घंटे बारिश हुई। उस दिन शहर में था तो निकल कर देखा, कहीं भी जलभराव नहीं मिला।
दहेज के पैसे हैं क्या 110 करोड़?
सीएम ने कहा कि राप्ती नदी में पहले नाले का पानी जाता था। एनजीटी की ओर से नगर निगम पर हमेशा जुर्माना लगाया जाता था। इस समस्या के सुधार के लिए निर्देश दिए तो यहां से एसटीपी लगाने के लिए 110 करोड़ का प्रस्ताव भेजा गया।
प्रस्ताव देख मैने पूछा कि- ये 110 करोड़ रुपये क्या दहेज के हैं क्या? इतने पैसे खर्च करन के बाद भी हर साल 10 करोड़ रुपये उसमें लगेंगे। इसकी जगह प्राकृतिक विधि से शोधन के उपाय तलाशने के निर्देश दिए। आज तकियाघाट नाला प्रदेश के लिए एक मॉडल बन गया है।
पत्थरों की दीवार और पौधों के बीच पानी छनकर राप्ती नदी में जा रहा है। इससे पानी का बीओडी भी कम हुआ है। धीरे-धीरे इसमें और सुधार आएगा। छह करोड़ की लागत से यह तैयार हो गया और हर साल केवल चार से पांच लाख रुपये खर्च होंगे। दूसरे नगर निगम के लोग भी आकर इसे देख रहे हैं।
उन्हाेंने कहा कि गोरखपुर एक अछा शहर है। अगल-बगल पर्याप्त जंगल है। झील है, जमीन है। काफी जमीन है जहां सिटी फॉरेस्ट बना सकते हैं। इससे कार्बन उत्सर्जन को न्यूनतम स्थिति में कर सकते हैं। एक्यूआई पहले यहां का 280 तक था। आज 100 से भी कम है। इसमें घर के चूल्हे का भी योगदान है।
पहले लकड़ी से भोजन बनता था जिससे धुंआ निकलता था। आज प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत गरीब महिलाओं को भी गैस सिलेंडर उपलब्ध कराया गया है। जरूरत है कि रेन वॉटर हार्वेस्टिंग हर घर में बने। भूगर्भ जल स्तर को बनाए रखना है तो जलाशयों को जिंदा रखना होगा।
महाकुंभ को लेकर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि महाकुंभ में आए श्रद्धालुओं का उद्देश्य केवल घूमना भर नहीं था। उनके मन में था की मां गंगा और यमुना को देख सकें। त्रिवेणाी में स्नान कर पुण्य कमाना चाहते थे। यदि संगम में पानी न होता, गंदगी होती, कनेक्टिविटी न होती तो कौन आता। नदी में पानी हमेशा रहे इसके लिए व्यवस्था की गई। अगर ऐसा न होता तो महाकुंभ मेला पहले चरण में उखड़ गया होता।