लखनऊ। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में दो साल बाद 2027 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. लेकिन विधानसभा चुनाव के लिए अभी से ही सियासी गोटियां सेट की जाने लगी है. सभी पार्टियां जोरों शोरों से अपने वोट बैंक को संभालने की जुगत में लगी हुई है. लेकिन इस बीच बसपा प्रमुख मायावती अपने सियासी वजूद और अपने वोटों को बचाए रखने की चुनौती से जूझ रही.
इस बार यूपी में ये देखने को मिल रहा है कि, बसपा का दलित जनाधार अखिलेश यादव की नैय्या को पार लगाएगा. यूपी के दलित समाज को अखिलेश भा रहे हैं. क्योंकि, कई बार देखा गया है कि, अखिलेश हमेशा दलित के साथ खड़े नजर आते हैं.
अखिलेश के आगरा दौरे से डरीं मायावती
फिर वा चाहे रामजीलाल के साथ खड़े होने का मामला हो या फिर इंद्रजीत सरोज के बयान, इसे सपा के दलित वोट जोड़ने के नजरिए से देखा जा रहा. सपा की दलित पॉलिटिक्स से मायावती बेचैन नजर आ रही हैं. ऐसे में मायावती दलित समाज के साथ मुस्लिमों को भी सपा से दूर रहने की नसीहत दे रही हैं. सपा के सांसद रामजीलाल सुमन के द्वारा राणा सांगा पर दिए बयान को लेकर सियासत गरमा गई है.
करणी सेना ने रामजीलाल सुमन के खिलाफ आक्रामक तेवर अपना रखा है और आगरा में ठाकुर समुदाय के लोगों ने विरोध प्रदर्शन कर सीधे चुनौती दे दी है. सपा ने रामजीलाल के पक्ष में खड़े होकर पूरे मामले को दलित बनाम ठाकुर का रंग देने की कोशिश की है.
19 अप्रैल को आगरा पहुंचेंगे अखिलेश यादव
अखिलेश यादव 19 अप्रैल को आगरा पहुंचेंगे, जहां रामजीलाल सुमन के आवास पर जाकर मुलाकात कर दलित समाज को सियासी संदेश देंगे. अखिलेश के आगरा दौरे से पहले मायावती ने सपा की दलित राजनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
मायावती का अखिलेश यादव पर निशाना
बसपा प्रमुख मायावती ने गुरुवार को ट्वीट कर सपा को निशाने पर लिया. उन्होंने कहा कि विदित है कि अन्य पार्टियों की तरह सपा भी अपने दलित नेताओं को आगे करके तनाव और हिंसा का माहौल पैदा करने वाले बयान दिलवाए जा रहे हैं, जिस पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा. ये संक्रीण और स्वार्थ की राजनीति है.
सपा भी दलितों के वोटों के स्वार्थ की खातिर किसी भी हद तक जा सकती है. दलितों के साथ-साथ ओबीसी और मुस्लिम समाज आदि को इनके किसी भी उग्र बहकावे में नहीं आकर, इन्हें इस पार्टी की राजनीतिक हथकंडों के बचना चाहिए.
मायावती ने आगे कहा कि ऐसी पार्टियों से जुड़े अवसरवादी दलित नेताओं को दूसरों के इतिहास पर टीका-टिप्पणी करने की बजाय यदि वे अपने समाज के संतों, गुरुओं और महापुरुषों की अच्छाईयों एवं उनके संघर्ष के बारे में बताएं तो यह उचित होगा, जिनके कारण ये लोग किसी लायक बने हैं. इस तरह से मायावती ने दलित समाज को सपा के दलित नेताओं के बहकावे में आने से बचने की नसीहत दे रही हैं. साथ ही मुस्लिम और ओबीसी को भी सपा से दूर रहने की अपील कर रही हैं.
लोकसभा चुनाव में सपा की जीत का परचम
2024 लोकसभा चुनाव में अखिलेश अपने पीडीए के दांव से 37 सीटें जीतने में कामयाब रहे. सपा ने पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वाली राजनीति से ही 2027 का चुनाव लड़ने का प्लान बनाया है. अखिलेश की नजर पीडीए राजनीति को और मजबूत करने की है, जिसके लिए उनकी नजर मायावती के वोटरों पर है.
अखिलेश यादव दो तरह से इस मिशन में जुटे हैं. सपा में दलित समाज के नेताओं को तवज्जो दी जा रही है. अखिलेश अपने आस-पास अब यादव और मुस्लिम नेताओं कों रखने के बजाय दलित नेताओं को साथ लेकर चलते हैं. इसी कड़ी में सपा ने सपा के पुराने नेता दद्दू प्रसाद को अपने साथ मिलाया है.
राणा सांगा पर बयान के बाद सपा के दलित सांसद रामजीलाल सुमन के घर करणी सेना ने हमला किया तो अखिलेश यादव और उनकी पार्टी ने सुमन के समर्थन में आसमान सिर पर उठा लिया. रामजीलाल सुमन के खिलाफ करणी सेना ने आगरा में एकजुट होकर अपनी ताकत की हुंकार भरी तो अखिलेश ने भी आगरा जाकर रामजीलाल सुमन से मुलाकात करने का प्लान बना लिया.
आगरा में बड़ा ऐलान कर सकते हैं अखिलेश
आगरा में हाल ही में रामजीलाल सुमन के खिलाफ करणी सेना के सम्मेलन के बाद पैदा हुई स्थिति पर वो अपनी रणनीति का ऐलान कर सकते हैं, क्योंकि आगरा को दलित सियासत का बड़ा केंद्र माना जाता रहा है.
दलित राजनीति की शुरुआत ज्यादातर सियासी दल आगरा से करते रहे हैं, जिस तरह से अखिलेश यादव लगातार इस मुद्दे पर रामजीलाल सुमन के साथ खड़े हैं और दलितों के साथ होने की बात कर रहे हैं, दलितों के खिलाफ बोलने वालों को नसीहत दे रहे हैं, उससे तो लगता है कि 19 तारीख को अखिलेश यादव कोई बड़ा ऐलान आगरा से कर सकते हैं.
सपा के दलित विधायक इंद्रजीत सरोज ने मंदिर और देवी देवताओं को लेकर विवादित बयान दिया था. इंद्रजीत सरोज के बयान का अखिलेश ने समर्थन नहीं किया, लेकिन रामजीलाल सुमन के साथ मजबूती से खड़े है. दलित वोटों के लिहाज से सपा रामजीलाल के साथ खड़े होना अपने लिए मुफीद मान रही.
सपा का पूरा फोकस दलित वोटबैंक जोड़ने पर है, जिसके लिए बसपा के बैकग्राउंड वाले नेताओं को अपने साथ मिला रहे हैं. आंबेडकर जयंती के मौके पर सपा ने स्वाभिमान-स्वमान समारोह करके दलितों को संदेश दिया. ऐसे में मायावती को अपने दलित वोटबैंक छिटकने का खतरा नजर रहा है.