महाराणा प्रताप की जयंती पर अखिलेश यादव ने भगवा पगड़ी बांधकर राणा सांगा पर बयान से हुए नुकसान पर डैमेज को कंट्रोल कर रहे सपा सुप्रीमो !

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सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महाराणा प्रताप की जयंती पर बीजेपी सरकार के एक दिन की जगह पर दो दिनों दी छुट्टी की मांग की है. साथ ही वादा किया कि सपा की सरकार बनेगी तो लखनऊ में गोमती रिवर फ्रंट पर महाराणा प्रताप की प्रतिमा लगाने और उनकी तलवार सोने की बनवाई जाएगी. माना जा रहा है कि अखिलेशने महाराणा प्रताप के बहाने राणा सांगा पर सपा सांसद रामजीलाल सुमन के बयान से नाराज चल रहे ठाकुर समुदाय को साधने की रणनीति है.

महाराणा प्रताप की जयंती शुक्रवार को सपा के कार्यालय विक्रमादित्य मार्ग पर मनाई गई. इस दौरान अखिलेश यादव सिर पर पगड़ी पहने नजर आए और महाराणा प्रताप की मूर्ति पर पुष्प अर्पित कर माल्यार्पण किया. अखिलेश ने कहा कि महाराणा प्रताप हमेशा हमें प्रेरणा देते हैं. हमारे समाज को त्याग, बलिदान, वीरता और शौर्य का सबसे ज्यादा महाराणा प्रताप से प्रेरणा मिलती है. सपा कार्यालय में संभवता पहली बार महाराणा प्रताप की जयंती मनाई गई है, जिसके सियासी मायने साफ समझे जा सकते हैं?

महाराणा प्रताप की मूर्ति लगाने का वादा
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने महाराणा प्रताप की जयंती पर उनकी प्रतिमा लखनऊ के रिवर फ्रंट के किनारे लगाने का ऐलान किया है. साथ ही उन्होंने कहा कि सपा सरकार ने महाराणा प्रताप के सम्मान में एक दिन की छुट्टी घोषित की थी, लेकिन अब हमारी मांग है कि उसे बढ़ाकर दो दिन की जानी चाहिए. एक दिन तैयारी में लग जाता है और दूसरे दिन बहुत उत्साह के साथ जयंती मना सकें. अखिलेश ने कहा कि सपा की सरकार बनती है तो रिवर फ्रंट पर महाराणा प्रताप की सबसे सुंदर प्रतिमा समाजवादी लोग लगाने का काम करेंगे. साथ ही उनके हाथ में चमकती हुई तलवार भी होगी, जो कि सोने की होगी.

राणा सांगा पर बयान को लेकर डैमेज कंट्रोल
सपा के राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन ने 21 मार्च को उच्च सदन में गृह मंत्रालय के कामकाज की समीक्षा पर बहस चल रही थी. रामजीलाल सुमन ने इस बहस के दौरान कहा था कि इब्राहिम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था, तो मुसलमान तो बाबर की औलाद हैं और तुम गद्दार राणा सांगा की औलाद हो. ये हिंदुस्तान में तय हो जाना चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि हम लोग बाबर की तो आलोचना करते हैं लेकिन राणा सांगा की आलोचना नहीं करते हैं. इस बयान को लेकर सियासी संग्राम छिड़ गया था. करणी सेना ने रामजीलाल सुमन के घर पर जमकर हंगामा किया और उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिए था. इसके बाद आगरा में करणी सेना ने तलवार लेकर विरोध किया था.

रामजी लाल सुमन की इस टिप्पणी के बाद बीजेपी के कई दिग्गज नेताओं ने अपना विरोध जताया था. ठाकुर समुदाय के लोग सड़क पर उतर गए थे, सपा के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर की थी. अखिलेश यादव अपने दलित सांसद रामजीलाल सुमन के साथ खुलकर खड़े थे, जिसके बाद कहा गया कि सपा के एजेंडे से क्या ठाकुर बाहर हो गए हैं. 2027 के चुनाव में सपा को सबक सिखाने का भी करणी सेना और ठाकुर संगठनों ने ऐलान कर दिया था. ऐसे में सपा प्रमुख सियासी मिजाज समझते हुए महाराणा प्रताप का दांव चला है ताकि ठाकुर वोटों की नाराजगी को दूर कर सकें.

यूपी में ठाकुर वोटों की समझें ताकत
उत्तर प्रदेश में भले ही पांच फीसदी ठाकुर समुदाय की आबादी हो, लेकिन उनकी सियासी ताकत उससे ज्यादा है. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में 63 राजपूत विधायक जीतने में सफल रहे थे, जबकि 2022 में 49 ठाकुर विधायक चुने गए. अवध से लेकर पूर्वांचल और पश्चिम यूपी में ठाकुर वोटर निर्णायक हैं. इस तरह से यूपी की सत्ता का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत ठाकुर वोटर रखते हैं, ऐसे में सपा प्रमुख ठाकुर वोटों की नाराजगी का जोखिम भरा कदम नहीं उठाना चाहते हैं.

बीजेपी के दिग्गज नेता पुरुषोत्तम रुपाला के क्षत्रिय समुदाय पर दिए गए विवादित बयान को लेकर करणी सेना ने यूपी में मोर्चा खोल दिया था, जिसका नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ा. वैसा ही माहौल राणा सांगा पर रामजीलाल सुमन के द्वारा दिए गए बयान के बाद हो गया है. ठाकुर समाज के लोग सपा के खिलाफ खड़े नजर आ रहे हैं. इसके चलते ही सपा डैमेज कंट्रोल करने में जुट गई है, जिसके लिए महाराणा प्रताप का सियासी दांव चला है.

सपा क्या ठाकुरों को साध पाएगी?
मुलायम सिंह यादव ने सपा का गठन किया तो यूपी के तीन बड़े वोटबैंक को टारगेट किया था, जिसमें यादव, मुस्लिम और ठाकुर हुआ करता था. इन्हीं तीन समाज के सहारे सपा राजनीति करती रही है. ठाकुर सपा का परंपरागत वोटर माना जाता था. मुलायम सिंह यादव ने जब जनता दल से अलग होकर समाजवादी पार्टी बनाई तो मोहन सिंह, अमर सिंह जैसे दिग्गज ठाकुर नेताओं को साथ रखा. इसके अलावा उन्होंने अलग-अलग इलाकों में भी ठाकुर नेताओं को जोड़ा और उन्हें संगठन में अहमियत दी. ठाकुरों का एक बड़ा तबका मुलायम सिंह यादव को पसंद करता रहा और ठाकुर अमर सिंह के साथ आने के बाद सपा की ठाकुर राजनीति में तेजी से विस्तार हुआ.

मायावती ने रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया को गिरफ्तार कर जेल भेजा तो सपा ने सड़क से संसद तक मोर्चा खोल दिया था. साल 2012 में सपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई थी. उस समय सूबे में 48 ठाकुर विधायक जीतकर आए थे, जिनमें 38 सपा के टिकट पर जीते थे. अखिलेश सरकार में 11 ठाकुर मंत्री बनाए थे. यूपी में जब-जब सपा विधानसभा चुनाव जीतती है, तब-तब ठाकुर विधानसभा में सबसे बड़े समूह के रूप में उभरते हैं. लेकिन 2017 में बीजेपी के सरकार में आने और योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद से ठाकुरों को सपा से मोहभंग हुआ है.

ठाकुर यूपी में बीजेपी के कोर वोट बैंक बन चुका है. सपा को समर्थन देने वाले रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने अब अपनी अलग पार्टी बना ली है और बीजेपी को समर्थन कर रहे हैं. राजा महेंद्र अरिदमन सिंह, राजा आनंद सिंह बीजेपी में शामिल हो गए. इस तरह से सपा के अन्य ठाकुर नेताओं का सियासी ठिकाना बीजेपी बन गई. 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही अखिलेश यादव ने सपा की रणनीति बदली है और ठाकुर वोटों की जगह ब्राह्मण, दलित और ओबीसी की जातियों को खास अहमियत देना शुरू किया है, लेकिन राणा सांगा पर दिए गए बयान से होने वाले सियासी नफा-नुकसान का आकलन कर सपा फिर से ठाकुरों को साधने में जुट गई है.

अखिलेश यादव ने 2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए ठाकुर वोटों की मोह नहीं छोड़ना चाह रहे हैं. उन्हें पता है कि ठाकुर वोटर अगर नाराज हुआ तो 2027 की सियासी नैया पार नहीं हो सकी. इसलिए उन्होंने अपने कार्यकाल में महाराणा प्रताप की जयंती पर छुट्टी को एक दिन से दो दिन करने और उनकी मूर्ति लगाने के साथ-साथ सोने की तलवार का भी वादा किया है. ऐसे में देखना है कि अखिलेश यादव क्या राणा सांगा वाले नुकसान को महाराणा प्रताप के जरिए भरपाई कर पाएंगे?

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