धरतीपुत्र नाम सुनकर आपके दिलों दिमाग में कौन सा नाम आता है ये बताने की जरुरत नहीं है… भारतीय राजनीती का एक पहलवान जिसने पूरी भारतीय राजनीती को पलट कर रख दिया। सियासत में बड़े बड़े से विरोधियों को ऐसे पटखनी देता की विरोधी चारो कहने चित्त हो जाता। कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव की जवानी के दिनों में अगर उनका हाथ अपने प्रतिद्वंदी की कमर तक पहुँच जाता था, तो चाहे वो कितना ही लंबा या तगड़ा हो, उसकी मजाल नहीं थी कि वो अपने-आप को उनकी गिरफ़्त से छुड़ा ले.आज भी उनके गाँव के लोग उनके ‘चर्खा दाँव’ को नहीं भूले हैं, जब वो बिना अपने हाथों का इस्तेमाल किए हुए पहलवान को चारों ख़ाने चित कर देते थे. किसानों ने जिसे अपना मसीहा माना,. आगे आपको हम आपको बताएंगे नेता जी मुलायम सिंह यादव के कुछ अनसुने राज !
उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई गांव में 22 नवंबर 1939 को मूर्ति देवी और सुघर सिंह यादव के घर मुलायम सिंह यादव का जन्म हुआ. परिवार साधारण था. लेकिन गांव में खेती किसानी के साथ जो चीज सबसे लोगों को जोड़ती थी वो थी पहलवानी. सुबह शाम गांव के अखाड़े में किशोरों और युवकों का मजमा जमता और सब अपनी पहलवानी के दांव आजमाते. इन्हीं में एक थे मुलायम सिंह यादव.
वह जब शिकोहाबाद से टीचर बनने के लिए बीए के बाद बीटी करने गए तो वहां एक मेले में दंगल में कूदने से खुद को नहीं रोक पाए. और यही दंगल उन्हें सियासत के उस मैदान तक ले गया, उस समय दंगल में मुख्य अतिथि थे उस इलाके के खांटी समाजवादी नेता नत्थु सिंह. वह कुश्ती के भी शौकीन थे. उन्होंने जब मुलायम को कुश्ती लड़ते और जीतते देखा तो उनसे प्रभावित हुए. उनका परिचय लिया. जीतने पर बधाई दी और मिलने की आमंत्रण देकर चले गए. फिर आगे जाकर उनकी मुलाक़ात भी हुई.. मुलाकात के दौरान मुलायम को उनका शिष्य बनते देर नहीं लगी. उनके विचार बातों से वह प्रभावित हुए. इसके बाद जब वह टीचर बन गए तो पूरी तरह से नत्थु सिंह के शागिर्द बन गए. उनके लिए चुनाव प्रचार का जमकर काम किया. जब जहां जरूरत होती तब वहां वह हाजिर रहते.
एक समय आया जब नेता जी को जाना पड़ा था जेल !
उसी दौरान जब नत्थु सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया तो मुलायम ने तमाम और कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर बड़ा आंदोलन इलाके में खड़ा किया. नत्थु रिहा हुए और मुलायम की पीठ थपथपाई. इसके बाद भी मुलायम तमाम आंदोलनों में ना केवल बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते बल्कि कदम कदम पर जाहिर करते कि उनमें कुछ खास बात तो है… नत्थु सिंह तब प्रजा सोशिलस्ट पार्टी में थे लेकिन जब 1964 में जब ये पार्टी टूटकर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी बनी तो नत्थु इस पार्टी को खड़ा करने वाले राम मनोहर लोहिया के साथ चले गए.. 1967 में यूपी में चौथे विधानसभा चुनाव हो रहे थे. यूं तो इटावा में कई दिग्गज नेता थे लेकिन नत्थु चाहते थे कि जसवंतनगर सीट से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का टिकट मुलायम को मिले. हालांकि जिले के कई नेताओं को इस युवा को टिकट मिलना जरा भी रास नहीं आया. चुनाव का मैदान सज गया था. मुलायम को आमतौर पर नौसिखिया समझा जा रहा था। मुलायम का मुकाबला एडवोकेट लाखन सिंह से था जिनका नाम उन दिनों सूबे ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर जाना जाता था.. लोग यहाँ तक कहने लगे थे की ये मुकाबला तो हाथी और चूहे के बीच है. कहां एक दिग्गज और कहां एक नौसिखिया. मुलायम चुपचाप लगे रहे. जनसंपर्क करते रहे. जीतोड़ मेहनत की…
नेताजी का राजनीतिक करियर !
जब चुनाव परिणाम सामने आया तो पता लगा कि 28 साल का ये नौजवान जीत गया है. तब वह यूपी विधानसभा में सबसे कम उम्र में विधायक बनने वाले शख्स थे. उनकी जीत की खबर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुई. इसके बाद तो मुलायम की सियासत जो शुरू हुई वो आगे ही आगे बढ़ती रही… वो 7 बार सांसद, 8 बार विधायक, एक बार रक्षा मंत्री और 3 बार 1989, 1993, और 2003 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले मुलायम सिंह का सियासी जीवन छह दशकों पर शामिल है… आपको बता दे 1974 में मुलायम सिंह यादव ने सोशलिस्ट पार्टी का साथ छोड़कर भारतीय क्रांति दल का दामन पकड़ लिया. 4 अक्टूबर 1992 को उन्होंने समाजवादी पार्टी की बुनियाद रखी. लोहिया को आदर्श मानने वाले मुलायम सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पद चिह्नों पर सफर शुरू किया. 1975 में आपातकाल के दौरान 19 महीनों तक कैदी भी बने. 1990 में राम मंदिर आंदोलनकारियों पर गोली चलवाकर मुलायम सिंह यादव भारतीय राजनीति का चर्चित चेहरा बन गए. अखिलेश यादव मुलायम सिंह की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. यादव परिवार के कई नेता देश प्रदेश की राजनीति कर रहे हैं….देश के लिए योगदान और समर्पित हो जाने वाले ऐसे धरतीपुत्र को हमारी ओर से कोटि कोटि नमन, देश को मुलायम सिंह यादव जैसा नेता मिलना मुश्किल है…. उन्होंने सेना, किसानो , नौजवानो सभी वर्गो के लिए महान कार्य किये हैं.