उत्तर प्रदेश उपचुनाव के साथ ही महाराष्ट्र चुनाव और झारखंड का भी चुनाव नजदीक है. बता दें कि यूपी उपचुनाव में भले ही कांग्रेस को सपा के रहमों करम पर जीना पड़ रहा हो. लेकिन महाराष्ट्र चुनाव में कांग्रेस ने सपा का दाव उसी पर फेर दिया है. ऐसे में अखिलेश यादव चाहकर भी कांग्रेस या फिर इंडिया गठबंधन पर हमलावर नहीं हो पा रहे हैं, क्योंकि सपा की सियासी डोर यूपी में फंसी है.
लोकसभा चुनाव में सपा 37 संसदीय सीटें जीतकर यूपी में नंबर की पार्टी बनी थी. इसके बाद ही अखिलेश यादव सपा को राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाने के मकसद से यूपी की बाहर विस्तार देने की स्ट्रैटेजी अपनाई थी. महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन के तहत चुनाव लड़ने की रणनीति सपा ने बनाई थी, जिसके लिए मुस्लिम बहुल सीटों पर लड़ने का सिलेक्शन किया था. सपा ने महाराष्ट्र में 32 सीटों पर चुनाव लड़ने की डिमांड शुरू की थी, उसके बाद धीरे-धीरे 12 और अब 5 सीटों पर आ गई थी, लेकिन कांग्रेस ने यूपी में उपचुनाव लड़ने से अपने कदम पीछे खींचे तो महाराष्ट्र में सपा के इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के मंसूबों पर ग्रहण लग गया.
यूपी में कांग्रेस ने सपा को दिया खुला मैदान
कांग्रेस ने यूपी में यूं ही सपा के लिए सियासी मैदान नहीं छोड़ा था बल्कि उसके पीछे रणनीति है. कांग्रेस सिर्फ कृपा पात्र बनने के बजाय सपा से उचित भागीदारी चाहती है. ऐसे में कांग्रेस ने पांच सीटों का प्रस्ताव रखा था, लेकिन सपा ने गठबंधन धर्म के तहत सीटों पर मशविरा नहीं किया. बिना बात किए उम्मीदवार घोषित कर दिए. गाजियाबाद और खौर सीट कांग्रेस को छोड़ने का ऐलान कर दिया. कांग्रेस के लिए दोनों सीटों पर एक तरफा समीकरण अनुकूल नहीं थे, जिसके चलते उसे नागवार लगा. सपा और कांग्रेस का सियासी आधार यूपी में एक ही है, जिसके चलते दोनों के बीच शह-मात का खेल है.
अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को बहुत ज्यादा सियासी स्पेस देने के मूड में नहीं है, जिसके चलते उन्होंने ऐसी सीटों का ऑफर दिया, जिसे कांग्रेस अपने लिए मुफीद नहीं मान रही थी. ऐसे में ऐन मौके पर सपा की ओर से फूलपुर सीट छोड़ने की बात को कांग्रेस ने खुद ही इग्नोर कर दिया. इसके पीछे सपा के मुज्तबा सिद्दीकी की जगह पर कांग्रेस से सुरेश यादव को चुनाव लड़ने पर कांग्रेस को भविष्य में खामियाजा भुगतना पड़ने का खतरा था. कांग्रेस पूरे देश में मुस्लिमों की हितैषी होने का दावा कर रही है. ऐसे में वह अल्पसंख्यक का टिकट काटने का कलंक अपने माथे पर नहीं लेना चाहती थी. इसलिए कांग्रेस ने उपचुनाव लड़ने का विकल्प छोड़ दिया और सपा को समर्थन करने के लिए ऐलान कर दिया.
अखिलेश यादव की सियासी मंसूबों को समझते हुए कांग्रेस ने यूपी उपचुनाव से अपने कदम पीछे जरूर खींचे, लेकिन अब उसकी तपिश महाराष्ट्र की राजनीति तक महसूस की जा रही. अखिलेश यादव महाराष्ट्र में मुस्लिम वोटरों और इंडिया गठबंधन के सहारे सपा का सियासी विस्तार करने का प्लान बनाया था, लेकिन सीट शेयरिंग में उन्हें बहुत ज्यादा भाव नहीं मिला. कांग्रेस सपा को सिर्फ दो सीटें महाराष्ट्र में देना चाहती है, वो भी जहां पर सपा के मौजूदा विधायक हैं. यही वजह है कि सपा ने जिन पांच सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया था, उनमें से तीन सीट पर कांग्रेस और एनसीपी ने अपने-अपने उम्मीदवार उतार दिए.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने रविवार को कहा कि हम लोग इग्नोर होने वाले लोग हैं. राजनीति में त्याग की कोई जगह नहीं है. महाराष्ट्र चुनाव के संबंध में दिए गए इस बयान को कांग्रेस के साथ गठबंधन से भी जोड़कर देखा जा रहा है. क्योंकि सपा महाराष्ट्र में पांच सीटों पर उम्मीदवार उतार चुकी है और वह इंडिया गठबंधन के तहत 12 सीटें मांग रही थी. कांग्रेस अपने कोटे की सीटें देने को तैयार नहीं है. इतना ही नहीं सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर फहाद अहमद ने अणुशक्ति नगर सीट से चुनाव लड़ने के लिए शरद पवार की एनसीपी का दामन थाम लिया है तो अबु आसिम आजमी के खिलाफ नवाब मलिक ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. इस तरह सपा के लिए सियासी टेंशन बढ़ गई है.
यूपी उपचुनाव की ही सियासी मजबूरी है कि सपा खुलकर कांग्रेस पर हमलावर भी नहीं हो पा रही है. अखिलेश यादव ने कहा कि हमारी पहली कोशिश गठबंधन में बने रहने की होगी. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि राजनीति में त्याग के लिए कोई भी जगह नहीं है. अगर वे हमें गठबंधन में नहीं रखना चाहते हैं तो हम वहीं चुनाव लड़ेंगे, जहां हमारी पार्टी को वोट मिलेंगे या फिर संगठन पहले से काम कर रहा है ताकि गठबंधन को नुकसान न हो.