राम नवमी पर अयोध्या के सपा सांसद बदले-बदले नजर आए. अवधेश प्रसाद ने सोमवार को न केवल राम मंदिर के दर्शन किए बल्कि उन पर पूरी श्रद्धा भी दिखायी. उन्होंने कहा कि राम हमारे रोम-रोम में हैं और हमने हमेशा प्रभु राम के दर्शन किये हैं. हम भाग्यशाली हैं कि हमारा जन्म अयोध्या जिले में हुआ है. सवाल यह उठता है कि जिस अयोध्या में पहुंचने के लिए देश भर के करोड़ो लोगों के बीच होड़ मची हो, वहां के सांसद को एक साल तक क्यों मंदिर जाने का समय नहीं मिला. जाहिर है कि अभी तक समाजवादी पार्टी और उनके नेता को लगता था कि राम मंदिर से दूर रहकर देश के कुछ खास वर्गों से हमदर्दी दिखाना उनकी राजनीति के लिए ज्यादा फिट रहेगा. पर शायद इधर कुछ परिस्थितियां बदली हैं. अवधेश प्रसाद ने यह भी दावा किया कि जल्द ही अखिलेश यादव अयोध्या रामलला का दर्शन करने आएंगे. तो क्या यह हाल ही में वक्फ बोर्ड संशोधन बिल, औरंगजेब विवाद, राणा सांगा कंट्रोवर्सी में हुई फजीहत के बाद डैमेज कंट्रोल की कोशिश है? या अयोध्या विधान सभा चुनाव हारने के बाद स्थानीय स्तर पर लोगों को मनाने की बात है? आइये देखते हैं असली कारण क्या है?
वक्फ बोर्ड संशोधन बिल, औरंगजेब और राणा सांगा विवाद का असर है
पिछले दिनों कम से कम तीन मौके ऐसे रहे जिसके चलते समाजवादी पार्टी हिंदुओं से दूर होती नजर आई है . विशेषकर राणा सांगा विवाद और औरंगजेब विवाद के बाद राजपूतों की नाराजगी इतनी बढ़ गई कि सपा सांसद रामजीलाल सुमन के घर को घेरने तक की नौबत आ गई . सबसे अहम बात यह है कि सपा सांसद रामजी लाल सुमन ने राणा सांगा के बारे में जो भी अपमानजनक बातें की वो उस पर अब भी कायम हैं. शायद यही कारण है कि राजपूतों के संगठन करणी सेना के निशाने पर हैं सपा सांसद अब भी बने हुए हैं. इस बीच अखिलेश यादव लगातार बीजेपी को चैलेंज करते रहे कि यूपी सरकार जानबूझकर ये सब करवा रही है.
कई बार राणा सांगा विवाद को यूपी में दलित बनाम राजपूत करने की कोशिश भी हुई. पर सरकार की सख्ती की चलते यह हो न सका. अब शायद अखिलेश यादव को लग रहा है कि पार्टी मुसलमानों के प्रति कुछ ज्यादा ही झुकी नजर आ रही है . शायद यही कारण है कि रामलला मंदिर में पहले अवधेश प्रसाद सपरिवार गए हैं और फिर अखिलेश यादव के जाने की तैयारी हो रही है. सपा सांसद अवधेश प्रसाद ने रविवार को सपरिवार दर्शन किया. प्रसाद ने कहा कि देवतुल्य देशवासियों की खुशहाली के लिए प्रभु श्रीराम से प्रार्थना की है. देवतुल्य जनता ने हमें अयोध्या जिले की फैजाबाद सीट से सांसद बनाया है. उन्होंने कहा कि प्रभु श्रीराम हमें ऐसी शक्ति दें कि जनता की उम्मीदों पर वे खरा उतर सकें.
क्या कांग्रेस की बैलेंस रणनीति को देखकर डैमेज कंट्रोल में जुटे अखिलेश
अखिलेश की चिंता केवल बीजेपी को लेकर ही नहीं है. उनके लिए सबसे बड़ी चिंता है कांग्रेस का राज्य में धीरे-धीरे विस्तार लेना. कांग्रेस ने जबसे दिल्ली में अकेले चुनाव लड़ा है उसकी सहयोगी पार्टियां विशेषकर समाजवादी पार्टी और आरजेडी सकते में हैं. उन्हें लगता है कि कांग्रेस यूपी और बिहार में भी दिल्ली वाली रणनीति पर काम कर सकती है. इसलिए अखिलेश यादव दोतरफा युद्ध लड़ रहे हैं. एक तरफ तो बीजेपी से उनका मुकाबला है दूसरी तरफ कांग्रेस को यूपी में पैर पसारने से रोकना है. कांग्रेस ने वक्फ बिल का विरोध जरूर किया है पर जिस तरह बिहार में तेजस्वी यादव और यूपी में अखिलेश यादव ने किया वैसा विरोध नजर नहीं आया. अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव दोनों ही ने कहा कि उनकी सरकार आएगी तो वक्फ बिल को खत्म कर दिया जाएगा या राज्यों में लागू होने नहीं दिया जाएगा. कांग्रेस इस तरह के स्टेटमेंट से बचती रही. यही नहीं पूरी गांधी फैमिली संसद में वक्फ बिल पर भाषण देने से भी कन्नी काट गई. कांग्रेस ने राणा सांगा और औरंगजेब विवाद से भी खुद को दूर रखा है. समाजवादी पार्टी को समझ में आ गया है कि यह सब कांग्रेस हिंदू सवर्ण वोटर्स को ध्यान में रखकर कर रही है. शायद यही कारण है कि अखिलेश डैमेज कंट्रोल करने बहुत जल्दी अयोध्या पहुंचने की तैयारी कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में पीडीए भी हिंदुत्व की चपेट में है
अयोध्या सांसद अवधेश प्रसाद ने राम लला का दर्शन करने के बाद कहा कि राम हमारे रोम-रोम में हैं. हम बहुत भाग्यशाली है कि हमारा जन्म इसी अयोध्या में हुआ है. हमने यहीं पढ़ाई की है. हर तीन-चार दिन बाद सीता रसोइया जाकर दर्शन करते थे. हमने प्रभु श्रीराम का दर्शन हमेशा किया है.
दरअसल अवधेश प्रसाद यह समझ रहे हैं कि जिस पीडीए की बात अखिलेश यादव करते हैं प्रदेश में सबसे कट्टर हिंदुत्व उसी वर्ग में है. खुद अवधेश प्रसाद की जाति के युवाओं का हिंदुत्व को लेकर रेडक्लाइजेशन सबसे अधिक है. हिंदू -मुस्लिम दंगों के समय शहरों या कस्बों में रहने वाली पिछड़ी और दलित जातियां सबसे अधिक एक्टिव रहती हैं. इन दंगों में सबसे अधिक नुकसान भी इन जातियों का होता है.
शायद यही कारण है कि हिंदुत्व के नाम पर इन्हें संगठित होने की उम्मीद रहती है. ये जातियां तब तक बीजेपी विरोधी होती हैं जब तक हिंदू-मुस्लिम नहीं होता है. पर ध्रुवीकरण होते ही ये लोग बीजेपी के हो जाते हैं. जिस तरह राणा सांगा , वक्फ बिल और औरंगजेब के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी मुस्लिम समर्थक नजर आ रही है उससे अवधेश प्रसाद को भी डर हो गया है कि हिंदू समर्थक नहीं दिखे तो हमारी राजनीतिक जमीन खिसक जाएगी.