बाबा के बुलडोजर पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार,कहा- जिनके घर गिराए उन्हें 10-10 लाख का हर्जाना दो !

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उत्तर प्रदेश समेत देशभर में बुलडोजर एक्शन को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त रवैया अपनाए हुए है. प्रयागराज में एक वकील, एक प्रोफेसर और तीन महिला याचिकाकर्ताओं के घरों को 2021 में बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया गया था. इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि घर गिराने की प्रक्रिया असंवैधानिक थी. कोर्ट ने कहा कि घर ध्वस्त करने की ये मनमानी प्रक्रिया नागरिक अधिकारों का असंवेदनशील तरीके से हनन भी है.

पांच पीड़ितों को 10-10 का मुआवजा

कोर्ट ने कहा कि यह हमारी अंतरात्मा को झकझोरता है और राइट टू शेल्टर नाम की भी कोई चीज होती है. इस सिलसिले में अदालत ने कहा कि नोटिस और अन्य समुचित प्रक्रिया नाम की भी कोई चीज होती है, जिसका पालन नहीं हुआ. कोर्ट ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण को आदेश दिया है कि पांचों पीड़ितों को 10-10 लाख रुपये का हर्जाना दिया जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिस तरह से तोड़फोड़ की गई, उस अमानवीय और गैरकानूनी कार्रवाई की वजह से मुआवजा लगाया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तोड़फोड़ की कार्रवाई पूरी तरह से अवैध थी और आश्रय के अधिकार का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह से तोड़फोड़ करना प्रयागराज विकास प्राधिकरण की असंवेदनशीलता दर्शाता है.

इसी मामले में सुनवाई के दौरान जस्टिस उज्जल भुइयां ने यूपी के अंबेडकर नगर में 24 मार्च को हुई घटना का जिक्र करते हुए कहा कि अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान एक तरफ झोपड़ियों पर बुलडोजर चलाया जा रहा था तो दूसरी तरफ 8 साल की एक बच्ची अपनी किताबें लेकर भाग रही थी. इस तस्वीर ने सबको हैरान कर दिया, ये दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है, जहां अवैध रूप से तोड़फोड़ की जा रही है और इसमें शामिल लोगों के पास निर्माण कार्य करने तक की क्षमता नहीं है.

नोटिस के 24 घंटे बाद चला बुलडोजर

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उनको एक्शन से पहले कोई नोटिस नहीं मिला. यहां तक कि नोटिस भेजने के 24 घंटे के भीतर ही बुलडोजर चला दिया गया. याचिकाकर्ताओं के मुताबिक साल 2021 में पहले एक मार्च को उन्हें नोटिस जारी किया गया था, उन्हें 6 मार्च को नोटिस मिला. फिर अगले ही दिन 7 मार्च को मकानों पर बुलडोजर एक्शन लिया गया.

अधिवक्ता जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद और अन्य लोगों की याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई की जिनके मकान ध्वस्त कर दिए गए थे. याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि प्रशासन और शासन को ये लगा कि ये संपत्ति गैंगस्टर और राजनीतिक पार्टी के नेता अतीक अहमद की है. इन सभी लोगों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में फरियाद की थी. लेकिन हाईकोर्ट ने घर गिराए जाने की कार्रवाई को चुनौती देने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी थी. हाईकोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने राज्य सरकार की कार्रवाई का बचाव करते हुए नोटिस देने में पर्याप्त उचित प्रक्रिया का पालन करने का भरोसा दिलाया. उन्होंने बड़े पैमाने पर अवैध कब्जों की ओर इशारा करते हुए कहा कि राज्य सरकार के लिए अनधिकृत कब्जा छुड़ाना और इसे रोकना मुश्किल काम है.

 

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