कौन थी स्वर कोकिला, लोकगायिका शारदा सिन्हा ? जिनके निधन पर पीएम मोदी भी रो दिए ?

Share it now

छठी मईया से शुरू छठ पर ही खत्म, जी हाँ स्वर कोकिला के नाम से प्रसिद्ध लोकगायिका और पद्म भूषण से सम्मान्नित शारदा सिन्हा अब हमारे बीच नहीं रही. दिल्ली के एम्स में मंगलवार 5 नवम्बर की रात को उनका निधन हो गया. पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा को छठी मईया ने छठ पर्व के दौरान ही अपने पास बुला लिया. मैथिली और भोजपूरी संगीत में उनका योगदान कभी नहीं भूला जा सकता है. शारदा सिन्हा अब हमारे बीच नहीं रही लेकिन छठ के गीतों को जब भी गुनगुनाया जाएगा बिहार की इस बेटी का नाम आता रहेगा. यूं कहे कि छठ जैसे महान पर्व शारदा सिन्हा के बिना अधूरा सा लगेगा… छठ के गीतों को बिहार की इस बेटी ने कुछ ऐसा गाया कि छठ का पर्व इनके गानों के बिना अधूरा माने जाने लगा. उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा आप इसी से लगा लीजिए की आज पूरा देश उनके निधन पर शोक जाता रहा है पीएम मोदी ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया उन्होंने सारदा सिन्हा को याद करते हुए लिखा की – लोक गायिका शारदा सिन्हा जी के निधन से बहुत ज्यादा दुख हुआ है। उनके गाए मैथिली और भोजपुरी के लोकगीत पिछले कई दशकों से बेहद लोकप्रिय रहे हैं। आस्था के महापर्व छठ से जुड़े उनके सुमधुर गीतों की गूंज भी सदैव बनी रहेगी। उनका जाना संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति! ट्वीट फोटो

सलमान खान से खास कनेक्शन

शारदा सिन्हा ने सिर्फ भोजपुरी गाने ही नहीं गाए थे. उन्होंने बॉलीवुड में भी एक से बढ़ कर एक गानों को अपनी आवाज से गुलज़ार किया था.बहुत कम लोगों को पता होगा कि बॉलीवुड में शारदा सिन्हा और सुपरस्टार सलमान खान का करियर लगभग एक ही साथ शुरू हुआ था. सलमान खान ने लीड एक्टर के तौर पर फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ से डेब्यू किया था. वहीं हिंदी फिल्मों में पहला ब्रेक शारदा सिन्हा को इसी फिल्म के गाने ‘कहे तो से सजना’ से मिला था. उनका ये गाना इतने सालों के बाद भी लोगों के जहन में है.

ऐसे बीता बचपन, जानिये कैसे मिली सफलता ?

मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी शारदा सिन्हा के पिता सुखदेव ठाकुर बिहार सरकार के शिक्षा विभाग में अधिकारी थे. इनके पिता ने अपनी बेटी के संगीत प्रेम को बचपन में ही पहचान लिया और ट्रेनिंग शुरू करा दी. घर पर ही इन्हें संगीत की शिक्षा मिलने लगी. हालांकि, पढ़ाई भी साथ-साथ जारी रही. पटना विश्वविद्यालय से शारदा सिन्हा ने कला वर्ग में स्नातक किया… शादी के बाद उनकी गायकी को लेकर ससुराल में आपत्ति हुई लेकिन उनके पति ने उनका साथ दिया और संगीत साधना में रमी रहीं.हाल फिलहाल तक शारदा सिन्हा समस्तीपुर में ही रहती थीं और एक कॉलेज में संगीत की शिक्षा भी देती थीं. 80 के दशक में मैथिली, भोजपुरी और मगही भाषा में परंपरागत गीत गाने वाली गायिका को तौर पर शारदा सिन्हा को प्रसिद्धि मिलने लगी.

शारदा सिन्हा की लाइफ का टर्निंग प्वाइंट

शारदा सिन्हा भोजपुरी के अलावा हिंदी, मैथिली और अंग्रेजी भाषा में समान पकड़ रखती थीं. खुद शारदा सिन्हा ने एक बातचीत में यह स्वीकार किया था कि बचपन से ही उनको गीत गाने का बहुत शौक था. वह अपने घर के आंगन में ही गाती रहती थीं. उन्हें पहली बार उनकी भाभी ने नेग का गीत गाना सिखाया था. उस गीत के बोल कुछ ऐसे थे- द्वार के छैकाई नेग पहले चुकाइयों एक दुलरूवा भइया था. यही वो गाना था जिसे शारदा सिन्हा ने पहली बार गाया और यही उनकी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ था.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *